Tuesday 10 August 2010

मैं और मेरी शायरी



मैं और मेरी शायरी


मुझे अपनी खता मालूम नहीं
पर तेरी खता पर हैराँ हूँ
तकदीर के हाथों बेबस हूँ
अफ़सोस है फिर भी तेरा हूँ

दीपक शर्मा कुल्लुवी

۰۹۱۳۶۲۱۱۴۸۶

من اور مری شیاری
مژه اپنی خطا معلوم نهن
پر تری خطا پر هران هون
تقدیر که هاتهون ببس هون
افسوس های فر بهی ترا هون

داپاک شارما کوللووی

۰۹۱۳۶۲۱۱۴۸۶

۲۹-۰۷-۲۰۱۰.

3 comments:

  1. meri dost ki taraf se ek msg :
    माफ़ी चाहूंगी आप के ब्लॉग मे आप की रचनाओ के लिए नहीं अपने लिए सहयोग के लिए आई हूँ | मैं जागरण जगंशन मे लिखती हूँ | वहाँ से किसी ने मेरी रचना चुरा के अपने ब्लॉग मे पोस्ट किया है और वहाँ आप का कमेन्ट भी पढ़ा |मैंने उन महाशय के ब्लॉग मे कमेन्ट तो किया है मगर वो जब चोरी कर सकते है तो कमेन्ट को भी डिलीट कर सकते है |मेरा मकसद सिर्फ उस चोर के चेहरे से नकाब उठाने का है | आप से सहयोग की उम्मीद है | लिंक दे रही हूँ अपना भी और उन चोर महाशय का भी
    http://div81.jagranjunction.com/author/div81/page/4/


    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.in/2011/03/blog-post_557.html

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  2. it is really very sad madam,don't know why people do it

    deepak kuluvi

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