Wednesday 1 September 2010

आपकी यादों का खज़ाना लिए

इक रोज़ चले जाएँगे हम

याद तो करोगे ज़रूर

पर कहाँ आ पाएँगे हम

दीपक कुलुवी

दो कतरा-ए-शराब पास न होती

तो क़यामत होती

तमाम रात बीत जाती

तेरी याद ही न जाती