Wednesday 1 September 2010

आपकी यादों का खज़ाना लिए

इक रोज़ चले जाएँगे हम

याद तो करोगे ज़रूर

पर कहाँ आ पाएँगे हम

दीपक कुलुवी

दो कतरा-ए-शराब पास न होती

तो क़यामत होती

तमाम रात बीत जाती

तेरी याद ही न जाती

5 comments:

  1. बहुत खूब जनाब !

    ReplyDelete



  2. आपकी यादों का ख़ज़ाना लिए
    इक रोज़ चले जाएंगे हम

    याद तो करोगे ज़रूर
    पर कहां आ पाएंगे हम

    हुज़ूर ! ऐसी बात है तो हम आपको कहीं जाने ही नहीं देंगे … हां !


    आदरणीय दीपक जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    बहुत मन से लिखते हैं आप !
    बहुत भावपूर्ण !

    आपकी छोटी छोटी बहुत-सी रचनाएं पढ़ीं …
    धन्य हो गया :)

    ♥ हार्दिक बधाई और बहुत बहुत मंगलकामनाएं शुभकामनाएं हैं आपके लिए !♥
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  3. hamari rachnayyen padne aur pasand karne ke liye sabhi ka hardik dhanyabad

    deepak

    ReplyDelete