Wednesday, 1 September 2010

आपकी यादों का खज़ाना लिए

इक रोज़ चले जाएँगे हम

याद तो करोगे ज़रूर

पर कहाँ आ पाएँगे हम

दीपक कुलुवी

दो कतरा-ए-शराब पास न होती

तो क़यामत होती

तमाम रात बीत जाती

तेरी याद ही न जाती

Tuesday, 10 August 2010

मैं और मेरी शायरी



मैं और मेरी शायरी


मुझे अपनी खता मालूम नहीं
पर तेरी खता पर हैराँ हूँ
तकदीर के हाथों बेबस हूँ
अफ़सोस है फिर भी तेरा हूँ

दीपक शर्मा कुल्लुवी

۰۹۱۳۶۲۱۱۴۸۶

من اور مری شیاری
مژه اپنی خطا معلوم نهن
پر تری خطا پر هران هون
تقدیر که هاتهون ببس هون
افسوس های فر بهی ترا هون

داپاک شارما کوللووی

۰۹۱۳۶۲۱۱۴۸۶

۲۹-۰۷-۲۰۱۰.

कातिल हैं

قتل حین

कातिल हैं

तेरी बेरुखी तेरा ग़म
मेरी तकदीर में शामिल है
कभी तो करते हमपे यकीं
के हम भी तेरे काबिल हैं
तेरी बेरुखी तेरा ग़म----
लाख जुदाई हो तो क्या
यादों में कभी हो ना कमीं
बचा लेंगे मंझधार से भी
हम ही तेरे साहिल हैं
तेरी बेरुखी तेरा ग़म----
क़त्ल भी कर दो उफ़ ना करें
हँसते हँसते मर जाएंगे
ना ज़िक्र करेंगे दुनियां से
कि आप ही मेरे कातिल हैं
तेरी बेरुखी तेरा ग़म----
हम 'दीपक' थे जल जाते खुद
क्यों आपने ज़हमत की ए-दोस्त
अफ़सोस है मुझे जलाने में
आप भी तो शामिल हैं
तेरी बेरुखी तेरा ग़म---

दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
09136211486
دیپاک شارما کوللووی




AAKHARI PANNEN
आखरी पन्नें
آخر بن

मेरे आंसुओं के
कद्रदान हैं बहुत
हम रोना नहीं चाहते
वोह बहुत रुलाते हैं


दीपक शर्मा कुल्लुवी
دبك شارما كلف

हमनें किसी के वास्ते
कुछ भी नहीं किया
अब किसको क्या बतलाएं
किस हाल में मैं जिया

दीपक शर्मा कुल्लुवी
دبك شارما كلف

प्राकृति से खिलवाड़

प्राकृति से खिलवाड़ होगा तो प्राकृतिक आपदा आएगी ही I

कहीं बाढ़ कहीं आग कहीं सूखे की मार कहीं बादल फटने की घटनाएँ कहीं भूकंप आज एक आम सी बात हो गई है I कारण केवल एक ही है प्राकृति से खिलवाड़ I पहाड़ों जंगलों खेत खलिहानों को काट काटकर बड़े बड़े भवन,होटल बन गए I भूमाफिया जंगल माफिया राज कर रहे हैं I गरीब लोग परेशान हैं I वृक्ष कटते जा रहे हैं I धीरे धीरे हम प्रलय की और जाते जा रहे हैं I समय रहते हम लोगों में जागरूकता नहीं आई तो वो दिन दूर नहीं जब इस धरा का नामो निशान मिट जाएगा I नाँ हम होंगे ना कोई हमारा नाम लेने वाला I हम सबको दिमाग से काम लेना चाहिए भूमि कटाव कम करें ,जगह जगह वृक्ष लगाएँ I हम प्राकृति का सम्मान करेंगे तभी प्राकृति हमारा साथ देगी अन्यथा हमें तहस नहस कर देगी I

दीपक शर्मा कुल्लुवी
दीपक साहित्य सदन शमशी
कुल्लू हिमाचल प्रदेश 175126

09136211486

Monday, 19 July 2010

मेरे कांगड़ी शेर अडिए अडिए तेरियां अक्खां च जग्ग वस्सदा मिंजो भी बसाई लै अडिए जादा वड्डा ना भी सहीदुहं कमरेयां दा सैट दुआई दे अडिए दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'09136211486दुध्धे ते चिट्टा रंग तेरातौये ते काले बालपोडर थप्पेया बट्टी बट्टी हेयर डाइये दा है एह कमाल दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'09136211486
मेरी शेर-ओ-शायरी

आपसे दीदार की
ऐसी सजा मिली
कल तक जो मेरे साथ था
दिल मेरा खो गया

दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486
मेरी शेर-ओ-शायरी


सब कहते 'दीपक कुल्लुवी' को
लिखना नहीं आता
हाल-ऐ-दिल अपना चाहकर भी
कहाँ कोई लिख पाता


दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486

मेरी शेर-ओ-शायरी
किस किसको रखते साथ हम अपनें
किसको छोड़ देते
हम टूट गए खुद-व-खुद
दिल अपनों का कैसे तोड़ देते
मेरी शेर-ओ-शायरी

दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486
मेरी शेर-ओ-शायरी

आज नहीं तो कल
याद आएगी ज़रूर
हमनें भी तो दर्द-ऐ-जिगर
उम्र भर ही सहा
दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486

मेरी शेर-ओ-शायरी


ग़म नहीं है इसका
मेरा लुट गया आशियाँ
अनके पास भी तो अपना
कहने को कोई ना रहा
दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486

मेरी शेर-ओ-शायरी


इतनी भी नहीं पी की तुम्हें
भूल पाते हम
इतने भी नहीं होश में
की याद रख पाते

दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486
मेरी शेर-ओ-शायरी


रफ्ता रफ्ता ज़िन्दगी यह
खाक होती जा रही
ऐसी हालत में भी ऐ-ग़म
याद तेरी आ रही
दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486

मेरी शेर-ओ-शायरी

ज़िन्दगी गुजर गई
यादें ना गई भुलाई
ना जानें आज क्या बात थी
जो याद बहुत आई


दीपक शर्मा कुल्लुवी
09136211486