Wednesday 14 July 2010

داور
नाज़ुक दौर
हमनें जो भी लिखा
वोह गुनाह हो गया
वक़्त को यह आज
क्या हो गया
दिखाया जिस किसी को हमनें
हकीकत का आइना
वोह हर शख्स मुझसे ही
खफा हो गया
मुहब्बत रही ना आज
दुनिया की झोली में
नफरत दिखाई देती है
हर शख्स की खोली में
वारदात ज़ुल्म-ओ-क़त्ल की
आज आम हो गई
मेरे वतन को यह आज
क्या हो गया
किस किस को सुनाओगे
दास्तान अब हालात की
हर शख्स इसमें ही जीने का
आदी सा हो गया
मुहब्बत-ओ-वफ़ा की बातें तो
अब इतिहास बन चुकी
अब तो कमबख्त दिल भी
बेवफा सा हो गया
बेवफा सा हो गया


दीपक शर्मा कुल्लुवी

०९१३६२११४८६,०११-30882881

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