Wednesday 14 July 2010

نادان
दिल-ए-नादाँ

हम थे नादाँ सारी दुनिया को समझाने निकले
रिश्ते जो टूट रहे उनको बचाने निकले
हम थे नादाँ सारी दुनिया को --------
दर्द कुच्छ ऐसे भी होते जो अपने होते
ख्वाव दुनिया में कहां सबके पूरे होते
बेवफाओं को दास्ताँ हम सुनाने निकले
हम थे नादाँ सारी दुनिया को------
यादो के खंजर तो होते गहरे
यह तो जाने वही जिसने झेले
मेरे अपने तो मुझको ही जलाने निकले
हम थे नादाँ सारी दुनिया को-------
'दीपक कुल्लुवी' कि ग़ज़ल तेरी ही कहानी है
दिल-ए-नादाँ को मिली तेरी ही निशानी है
ज़ख्म-ए-दिल आपको ही दिखाने निकले
हम थे नादाँ सारी दुनिया को------

दीपक शर्मा कुल्लुवी

داپاک شارما کوللووی

09136211486

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